Sunday 23 July 2017

सावन में भगवान शिव को जलाभिषेक कयूं करते है?

सावन का महीना पवित्र महीनों में एक है।सावन को आदिकाल से भगवान शिव से जोड़कर देखा जाता रहा है,जिसके लिए यह मान्यता प्रचलित रही है कि इसी माह में समुद्र मंथन के दौरान निकले हुए अमृत एवम विष में हलाहल विष को  भगवान शिव ने समाज की भलाई के लिए पी लिया। ये विष नुकसानी न करे, इसलिए उन्होंने इसे गले से नीचे उतरने नहीं दिया और कंठ में धारण कर नीलकंठ कहलाये।इससे उनका पूरा शरीर नीला पड़ गय तथा विषपायी होने के कारण शरीर में उत्पन्न होनेवाली ऊष्मा को शांत करने के लिए उन्होंने मां गंगा से जल देने का आग्रह किया। तभी से देवगण और मानव उन्हें जलाभिषेक कर राहत देने का प्रयास करते है और कृपा प्राप्त करते है। बेलपत्र चढ़ाने के पीछे भी उसका प्रकृति में शीतल होना है।
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आओ हम अपना जीवन शिवमय बनाऐँ।


              संसार के सभी धर्मों और संस्कृतियों के आधार भगवान शिव मनुष्य के धरती पर आने और संसार की पहली सभ्यता सिन्धुघाटी की सभ्यता के बसने से आजतक न सिर्फ हिन्दू सनातन धर्मियों बल्कि मुस्लिम, ईसाई और न जाने कितने धर्मो के देव हैं। यह और बात है कि हिन्दु धर्मावलंबी को छोड़कर दूसरे धर्मवाले इसे सीधे रूप में स्वीकार नहीं करते।परन्तु यदि आप गहराई से देखें तो पाएंगे कि सभी धर्मों के युवाओं का स्वभाव महादेव के जैसा ही है। वर्तमान व्यवस्था से इतर सोच और  बागी स्वभाव रखने वाले। उन्हें शिव जी की यही बात अच्छी लगती है कि देवता होने के वावजूद एक आम इंसान की तरह वे गलत बात को बर्दाश्त नहीं करते और क्रोधित हो जाते हैं। समाज के वे नियम कानून जो उन्हें अनुचित लगते हैं, उसे मानने के लिए जल्दी तैयार नहीं  होते।वे अन्य  देवताओं के जैसा पद से चिपकने वाले नहीं वल्कि  समाज के हित के लिए  सत्ता को त्यागने वाले है।
            आम जीवन में आप खुद देख सकते है कि आईआईएम और ना जाने कितने विश्वस्तरीय संस्थानों से पढ़कर निकले युवाओ ने देश समाज की भलाई और गरीब, निःसहाय लोगों के जीवन में खुशियां और बदलाव लाने के लिए अपनी वेहतर सुविधापूर्ण जीवन और कैरियर को त्याग दिया है।
            हमारे शिव भी ऐसे ही हैं। वे आजाद ख्याल हैं।
औघड़ बनकर वेचैन युवाओ का प्रतिनिधित्व करते है, तभी तो हमारे दिलों में आसन जमाये वैठे हैं।हरिद्वार , देवघर आदि स्थानो पर कावड़ लेकर जानेवाले यात्रियों पर एक नज़र डालिये, इनमे अधिकांश संख्या युवाओ की ही मिलेगी।सावन का महीना तो खैर शिवमय ही  रहता है।
            भगवान शिव ने समाज की भलाई के लिए विषपान किया था। यह पौराणिक कथा हम वचपन से पढ़ते आएं हैं।आज के संदर्भ में अगर इसे देखें तो पाएंगे कि समुद्रमंथन देश और समाज के बदलाव का प्रतीक है।बदलाव के बाद अच्छी और बुरी दोनों तरह की चीजें सामने आती हैं।शिव ने समाज के लिए बुरी चीज हलाहल विष को खुद पीकर अमृत कलश दूसरों (समाज) के लिए छोड़ दिया।
           इतनी त्याग अगर हम युवा समाज के लिए कर सकें, तो यकीन मानिए यह समाज आज से ज्यादा सुखी सम्पन्न हो जाएगा।यह विष पीना है अपनी स्वार्थो का। निस्वार्थ भाव से जाने अनजाने दूसरे लोगों को मदद कर हम उनकी जीवन मैं सुख, शांति,समृद्धि और इक मीठी याद दे सकते हैं।
             युवा शिवभक्त समाज की रचना के लिए , अच्छाई के लिए रुढ़ हो चुकी परम्पराओ और बुरे कार्यो के खिलाफ लड़े, यह आज का युगधर्म है।हम युवा ही सदियों से बदलाव के वाहक रहें है।हममे उत्साह है, शक्ति है, नवीन सोच है।हम ही भगवान शिव से प्रेरणा पाकर अन्याय, अपमान, गुलामी और अत्याचार से लड़ते आएं है, लड़ते रहेंगे।कुछ राजनीतिक दलों  और राष्ट्रविरोधी ताकतों ने निज हित हेतु हमें बरगलाकर हमारी असीम ऊर्जा को  देशविरोधी कार्यो मैं उपयोग कर रहे हैं। इन्हें हम पहचाने और इन आसुरी शक्तियों को परास्त करें, यह हमारा उद्देश्य बने।
           भगवान   शिव  स्त्रियों पुरुषो में एक समान प्रिय हैं। हर स्त्री की चाहत शिव जैसे पति पाने की है।आखिर कयूं? क्योंकि वे स्त्री पुरुष में कोई भेदभाव नहीं करते । वे अपनी पत्नी से बेइंतहा प्यार के साथ साथ इज्जत भी करते हैं। अपनी पत्नी का अपमान बर्दास्त नहीं करते, चाहे अपमान करनेवाला उनका श्वसुर ही क्यों न हों।वे भगवान श्री राम नहीं हैं, जो प्रजा की झुठी बातों पर अपनी पत्नी का परित्याग कर दे। शिवजी की पत्नी पर यदि कोई अत्याचार करे, तो वे अत्यंत क्रोधित हो जाते हैं और रुद्र रूप धारण कर दुस्टों का संहार करने लगते हैं। वे पत्नी के मान सम्मान के लिए कोई कसर नहीं छोड़ते। वे पत्नी के अच्छे मित्र, सहयोगी और मददकार भी हैं। भले ही स्वभाव से वैरागी हों, लेकिन वे अच्छे पति और पिता भी हैं। जिसकी उपमा पूरे संसार में कहीं नहीं दी जा सकती। अच्छा घर चलाने की कला लोग शिव से सीखें। वैराग्य और गृहस्थ जीवन का ऐसा सुंदर समन्वय भगवान शिव के जीवन में ही मिल सकता है।भला ऐसा पति कौन स्त्री नहीं चाहेगी और ऐसा पिता कौन नर नारी नहीं चाहेगा। शिव के इसी संरक्षक और संहारक रूप के दीवाने हैं युवा। भगवान शिव का यही जीवन हमारा प्रेरणा स्रोत बने।
      शिवजी महाज्ञानी हैं।वे ऊंच नीच, ज्ञानी अज्ञानी मैं भेदभाव नहीं करते।कर्मकांडो से बंधे नहीं।देव हो या असुर या कोई साधारण मानव। कोई भी एक लोटा जल अर्पणः कर इनका कृपा प्राप्त कर सकता है। ये विना भेदभाव के अपना आशीर्वाद दे देंगे।
     शिवजी की बारात को देंखे।कोई भी इनके बारात में शामिल हो सकता है। क्या मानव, क्या दानव, क्या पशु- पक्षी। न कोई जाति बंधन, न रंग रूप का। शिव हैं देवता,दानव, मनुष्य, पशू-पक्षी सबमे एक समान प्रिय।शिवजी का यह गुण युवाओ के मन मिजाज के हिसाब से सटीक बैठता है।
    वास्तव में शिव एक तानाशाह ईश्वर नहीं हैं, जो सृष्टि के संहारक के रूप में जाने जाते हैं, वल्कि हमारी आपकी तरह सहज इंसान हैं। वे अपने दिल की आवाज़ सुनते हैं और उसके अनुसार कर्म करते हैं।सामान्य इंसान की तरह वे नृत्य करते हैं। डमरू के माध्यम से सम्पूर्ण ब्रह्मांड को संगीत से साधते हैं। जरूरत पड़ने पर योगी बनकर योग और ध्यान योग और ध्यान भी करते हैं।
               शिव हमारी सुसुप्त चेतना को जाग्रत करने का स्रोत हैं। आज का युवा शिव जी की तरह संकल्प, साहस,ज्ञान और कर्म के बल पर नायक और महानायक बन सकता है। जैसे शिव देवो में महादेव हैं।