Saturday 1 April 2017

कैसा हो ग्रीष्म ऋतु में हमारा आहार विहार?

ईश्वर ने हर ऋतू को अपने आप में कुछ खास बनाया है। ग्रीष्म ऋतु का आगमन ऐसे समय में होता है, जब  सूर्य की किरणें तल्खी दिखाने लगती है और सर्दी की विदाई होने लगती है। मौसम में परिवर्तन के साथ प्रकृति में भी परिवर्तन दिखने लगता है।प्र कृति साल भर पुराना अपना चोला उतारकर फेक रहा होता है औऱ नया हरा हरा वस्त्र धारण कर रहा होता है। ऐसे समय में मौसम का  असर हमारे शरीर और स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। हमें सर्दी के मौसम में अपनायी गयी खानपान की आदत बदलनी होती है। चूँकि वातावरण में गर्मी बढ़ने लगती है, इसलिए अब हमें देर तक सोने की आदत छोड़कर सुबह की ठंढी ठंढी हवा में घूमना टहलना चाहिए। देर तक भूखे रहने की आदत भी महँगी पड़ सकती है इसलिये सुबह जल्दी से हाथ मुँह धोकर और स्नान आदि से निवृत होकर कुछ खा पी लेना चाहिए। सुबह का नास्ता में  अगर आंकुरित चना, दलिया, फल, दूध आदि हो तो फिर क्या बात है? पानीदार फल , सब्जियां यथा खीरा, ककड़ी, तरबूज़ आदि मौसमी फल का सेवन इस मौसम में  सबसे बेहतर होता है।
         इस मौसम में ख़ाली पेट बाहर धुप में निकलने से बचना चाहिए। अगर निकलना ही पड़े तो भर पेट पानी पीकर और मोटा तौलिया ओढ़कर ही निकलें। बाहर से आने के बाद थोड़ी ठहरकर ही पानी पीनी चाहिये। सूती कपड़ा इस मौसम के लिए सबसे बढ़िया होता है।
       ग्रीष्म ऋतू में रात में देर तक जागना और सुबह देर से उठना गलत होता है। इससे बचना चाहिए। गर्मियों की घुल भरी दोपहरी उमस और आलस पैदा करता है। इस समय हमें दोपहर के भोजन के उपरांत थोडी देर आराम करनी चाहिए।
       गर्मियों की शाम बड़ी ही सुहावनी होती है। इस समय थोडी देर मनोहारी वातावरण में टहलना चाहिए। इससे मन प्रफुल्लित और आनन्दित होता है।इस समय ठंढी लस्सी औऱआम के पन्ना का सेवन क ऱ ना चा हि ऐ।

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