Thursday, 17 October 2019

बच्चों को किसी शिक्षा दी जानी चाहिए।

बच्चे तो बच्चे होते हैं।जिन्हें जाति, धर्म और सम्प्रदाय की सीमा में नहीं बांध जाना चाहिए।एक सुदृढ और अखण्ड राष्ट्र के निर्माण के लिए आवश्यक है कि उनमें राष्ट्रीयता का बीज बचपन मे ही डाला जाय साथ ही एक सामाजिक, नैतिकवान व्यक्तितव का निर्माण करने के लिए बच्चों को शिक्षा में नैतिक कहानियां,सभी धर्मों का सार,राष्ट्रनायक नायिकाओ की जीवनी तथा इतिहास एवम विज्ञान की शिक्षा दी जानी चाहिए।

Sunday, 10 February 2019

हमें 14 फरवरी को वैलेन्टाइन दिवस मनाना चाहिए या नहीं?

 वेलेंटाइन दिवस मनाना हमारी संस्कृति नहीं है। हम तो श्रीकृष्ण के सन्तति और उस संस्कृति के ध्वजवाहक हैं, जिनका हर दिवस कोई न कोई पर्व,त्योहार,उत्सव होता है। हम सकल विश्व की सुखकामना, उत्तम स्वास्थ्य की कामना करने वाले, हर नर नारी से बिना स्वार्थ प्रेम करने वाले,देव ऋण, पितृ ऋण आदि से मुक्ति को अपना पुरुषार्थ समझने वाले लोग हैं। वैलेन्टाइन डे उस संस्कृति का हिस्सा है,जहां एक दिन प्रेम के नाम पर उतशृंखलता किया जाता है,हमारी संस्कृति हर दिन, हर क्षण निश्वार्थ भाव से अपना कर्तव्य समझ कर अपने माता पिता,पत्नी,बच्चों, भाई बहन,पड़ोसी,बन्धु बांधव की सेवा में समर्पण का भाव पैदा करता है सो 14 फरवरी भी बस एक दिवस है,बस और कुछ नहीं।
इस भौतिकवाद,बाजारवाद की उपज दिवस को उन्हीं लोगों के लिए छोड़ दें, जिन्हें अपनी संस्कृति का भान नहीं।

Friday, 8 February 2019

मतांतरण का प्यारा सा तरीका लव जिहाद।

               सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित दुख भाग भवेत तथा वसुधैव कुटुम्बकम यानी पूरी वसुधा हमारी कुटुम्ब है,हमारी हिन्दू संस्कृति का मूल उद्देश्य है। जहां हम सभी धर्मों को सत्य मानकर उनका आदर करते हैं तथा विभिन्न मत मतांतर और भिन्नता के वावजूद सभी लोगों से मित्रवत व्यवहार करते हुए उनके विचारों का सम्मान करते है। एक हिन्दू किसी का मतांतरण करने के बारे में कभी नहीं सोचता। लेकिन एक विशेष धर्म पृथ्वी को विशेष धर्म मानने वालो के हिसाब में दो भागों में बाटता है और उस धर्म वालो से कहता है कि दारुल इस्लाम वालो का फर्ज है कि मार काट, भय, उत्पीड़न,या फिर प्रेंम से अपने धर्म मे लोगों को मतांतरित करो और पूरी पृथ्वी को एक धर्म इस्लाम के झंडे के नीचे लाओ। इस पुनीत कार्य को जिहाद कहते है, जिस कार्य मे मारे भी गए तो अल्लाह जन्नत के साथ 72 हूरों यानी लड़कियां के साथ ऐयासी करने को देगा और अगर जिंदा रहे तो राजनीतिक रूप से सत्ता अपने पास होगी,धन सम्पति होगी, ऐयासी करने के लिए दूसरे धर्म की महिलाएं होगी आदि आदि। यहां धर्म के नाम पर पाप कुछ भी नहीं है, मतांतरित करना ही पूण्य है। इस मतांतरण के विभिन्न तरीकों में एक तरीका है भोली भाली हिन्दू लड़कियों को प्यार के नाम पर फांसना और उसे इस्लाम मे लाना। यह कार्य लव जिहाद कहलाता है, जिसके लिए बाकायदा रेट फिक्स है और मुस्लिम देशों से धन भेजा जाता है एजेंटों को।
हमारा हिंदुस्तान सन 1000 ईसवी से आज तक तलवार से लेकर प्यार तक द्वारा जिहाद से सामना कर रहा है, जिसमे हम आत्ममुग्ध होकर, एक दूसरे का पैर खीचते हुए, जातिगत अभिमान में सीना फुलाये सोये हैं और वे लोभ, भय,उत्पीड़न,प्यार द्वारा बहुत कुछ सफल। हमारे ही भाई मतांतरित होकर हमारे विरुद्ध तलवार खिंचे हुए है, हमारी बहने प्यार के नाम पर ठगी जा रही और हम उनका व्यक्तिगत मामला मानकर चुप रहते हैं।
इनके प्रति हिन्दू लड़कियों को जागरूक करना हमारा फर्ज होना चाहिए।
हमारा आग्रह है अपने दायरे को बढाइये। खुद भी जगगरुक बनिये और लोगों को जगाइए।
अगले लेख में बताऊंगा लव जिहाद का तरीका और फिक्स किया गया रेट के बारे में ।
धन्यवाद।
जन जागरूकता के लिए इसे लोगो को  फारवर्ड कर सकते हैं।

भारतीय शिक्षा प्रणाली की कमियाँ।

हमारे शास्त्रों में कहा गया है-
या विद्या सा विमुक्तये ।
अर्थात विद्या वही है जो हमें विमुक्ति की ओर ले चले।
भारतीय शिक्षा प्रणाली की जब हम बात करते है,तो हमारा इससे तात्पर्य क्या होता है?
  अगर इससे  तात्पर्य हमारी प्राचीन गुरुकुल व्यवस्था से है,जिसमे हमारे ऋषि महर्षिगण नगर से दूर सुरम्य वातावरण में सभी शिष्यों को बिना कोई भेद भाव और फीस के सभी लौकिक विषयों और नैतिकता,धर्म,अध्यात्म आदि की शिक्षा दी जाति थी और शिक्षार्थी को आत्मनिर्भर ता और व्यवसायिक शिक्षा दी जाति थी, से है तो आप खुद पाएंगे कि इस मौजूदा शिक्षा प्रणाली में क्या कमियां दिख रहीँ हैं? हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली में आज के समाज की सारी दुर्गुणों यथा बेरोजगारी, गरीबी, अनैतिकता, अधार्मिकता , नारी हिंसा आदि का इलाज है , जो कभी भी विफल हो ही नहीं सकती।
हम सभी को पता है कि अंग्रेजो को हमारे देश मे अपनी सत्ता को मजबूती प्रदान करने और सुचारू रूप से चलाने के लिए मन से अंग्रेज और तन से भारतीय योगों की जरूरत थी,जिसे उन्होंने लार्ड मैकाले की अनुशंसा पर हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली को ध्वस्त कर एक ऐसी शिक्षा प्रणाली थोप दी,जो हमें अंग्रेजी भाषा के जानकार किरानी बनाने वाला, भ्रस्ट, बेईमान, अपनी मातृभूमि, धर्म,अध्यात्म से नफरत करने वाला बनाया। इस शिक्षा प्रणाली का ही देन है कि विद्यार्थी परीक्षा उतीर्ण कर भी खाली दिमाग जीवन में प्रवेश करता है। यह हमें बेईमान,कामुक, भ्रष्ट और बेरोजगार बनाता है फिर इस शिक्षा प्रणाली के प्रभाव में हम अपनी संस्कृति, परम्पराएं,धर्म और देश को नीचा दिखाने और आत्मग्लानि का भाव महसूस कराने वाला बनाता है। इस शिक्षा प्रणाली में देश धर्म संस्कृति का बंटाधार तय है।जिसे बदलकर अपनी प्राचीन शिक्षा प्रणाली से जोड़ने की आवश्यकता है,जैसे डीएवी विद्यालयों एवम सरस्वती शिशु विद्या मन्दिरो आदि में शिक्षा दी जा रही है।

Monday, 27 August 2018

पढिये और गुनिए
           भारतवर्ष के विराट पावन धरती पर भारतीय संस्कृति के उद्दात विचारधारा अतिथि देवो भवः को माननेवाले हम आर्यपुत्रो के दिलो का आत्मस्वार्थ मे इतना संकुचित हो जाना कि दूसरे तो दूसरे अपने बन्धु बांधवो के लिए भी कोई स्थान न रहे,ये हमारी भारतीय संस्कृति के पाश्चात्य संस्कृति में घोर दूषित होने का परिचायक है,जो आजकल आपसी रिश्तों के निर्वाह में सर्वत्र  देखा जा रहा। विचारणीय विंदु यह है कि क्या हम उन्ही पूर्वजो के सन्तति हैं,जिन्होंने अपने द्वार पर आनेवाले मनुष्य  तो मनुष्य गाय, कुत्ते,तोता मैना को भी अपने घरों और दिलो में स्थान दिया ? अतिथि को द्वार पर आने मात्र के भनक से अपना भोजन छोड़कर अतिथि को खिला देने वाले,घर की पहली रोटी गाय और अंतिम रोटी कुत्ते को खिलाने वाले हमारे उन पूर्वजो की आत्माये आज हमारे कृत्यों पर कितना गर्व करती होंगी? आधुनिक शिक्षा में शिक्षित लक्ष्मीपुत्रो के शानदार हवेलियों के द्वार पर "कुत्तो से सावधान" और ग्वार,पिछड़े, निर्धनों के द्वार पर " सुस्वागतम" लिखा क्यों होता है? माना कि हम 21वीं सदी के अतिआधुनिक मानव जन हैं, फिर हमारे आचरण इतनी शर्मिंदगी  भरी और स्वार्थपूर्ण कयूं है,जहां घर के बड़े बुढो का भी घर मे स्थान नहीं रहा? रिश्ते नातेदारों की बात क्या करें? उपेक्षित,असहाय,नित्य प्रतिपल घुटते उनकी  आत्माओ की आवाजें क्यों हमारी कान के पर्दे नहीं फाड् रही? कभी तो हम पूछे कि वे सोचते क्या हैं? चाहते क्या हैं?
वस्तुतः हम जिस विषबेल को पल्लवित, पुष्पित कर रहे,उसके विषफल से कल हम भी बचने वाले नहीं? आज के हम युवा,कल के बड़े बूढ़े होंगे,फिर आज हम जो उदाहरण अपने बच्चों के सामने पेश कर रहे,उसके  भुक्तभोगी होने से हम भी बचनेवाले नहीं।
ये कुछ विचारबिन्दु हैं, हमारे लिए। इनपर मनन चिंतन हमारे कल का निर्धारण करेंगे।
- कमल किशोर प्रसाद
www.tikhimirchiofadvocatekamal.blogspot.com

Saturday, 2 June 2018

            देश की न्याय व्यवस्था में वर्षो से चल रहे खेल का पर्दाफाश जितना होना चाहिए था,उतना हुआ नहीं और बार कौंसिल ऑफ इंडिया उसे लीपा पोती में लग गया है।
हमारी संविधानिक व्यवस्था और ऊपर से कोलोजियम सिस्टम मनमाने वकीलों को न्यायधीश बनाने और उसके बाद राजनीतिक वकीलों और माननीयो की आपसी साजिश के तहत देश के अहम मुद्दों पर मनमाना निर्णय पाने और वकीलों के जायज नाजायज अकूत धन कमाने की इस होड़ ने 60 सालो में देश का क्या हाल बना दिया है?
देश मे कांग्रेसियो, बामपंथियों ने जो खेल खेला है,उसका सच आना ही था,और उसकी सजा वनवास के रूप में जनता दे भी रही है। मौजूदा घटना तो उसका एक उदाहरण ही है।
यह कहाँ की न्यायसंगत व्यवस्था है कि राजनीतिक प्रभाव और पैरवी में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करनेवाले अधिवक्ता उसी कोर्ट में जज बन जाये और अपने द्वारा दाखिल मामलो में फैसला दे। अपने जूनियरों और साथियो के पक्ष में क्या फैसला पक्षपाती नहीं होगा?
इसी घालमेल के कारण सुप्रीम कोर्ट के वकीलों ने इतनी ज्यादा अपनी फीस बढ़ा रखी है, की आम आदमी यहां पैर रखने की हिम्मत नहीं करता।
निचली अदालत में भी तमाम अच्छे अधिवक्ता हैं, पर वे इस तरह जज बनने की क्या सोच,उम्र बीत जाती है एक अदद वरिष्ठ अधिवक्ता तक नहीं बन सकते।
निचली अदालत में काम करने वाला लिपिक चाहे भले ही क्यों न लॉ की डिग्री रखता हो, कानून का अत्यधिक व्यवहारिक ज्ञान हो,अनुभव हो लेकिन एक सेकंड क्लास मजिस्ट्रेट नहीं बन सकता।  न ऐसा कोई डिपार्टमेंटल सिस्टम है। क्या इसमे कोई बदलाव नहीं आनी चाहिए?
बात निकली है तो दूर तलक जानी चाहिए।
यह सिस्टम अब बदलनी ही चाहिए।
          आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया का हमे इंतेजार रहेगा।
हमे फॉलो करें www.tikhimirchiofadvocatekamal.blogspot.com पर।
धन्यवाद।

Sunday, 21 January 2018

न्याय व्यवस्था की विडंबना

देश की न्याय व्यवस्था में वर्षो से चल रहे खेल का पर्दाफाश जितना होना चाहिए था,उतना हुआ नहीं और बार कौंसिल ऑफ इंडिया उसे लीपा पोती में लग गया है।
हमारी संविधानिक व्यवस्था और ऊपर से कोलोजियम सिस्टम मनमाने वकीलों को न्यायधीश बनाने और उसके बाद राजनीतिक वकीलों और माननीयो की आपसी साजिश के तहत देश के अहम मुद्दों पर मनमाना निर्णय पाने और वकीलों के जायज नाजायज अकूत धन कमाने की इस होड़ ने 60 सालो में देश का क्या हाल बना दिया है?
देश मे कांग्रेसियो, बामपंथियों ने जो खेल खेला है,उसका सच आना ही था,और उसकी सजा वनवास के रूप में जनता दे भी रही है। मौजूदा घटना तो उसका एक उदाहरण ही है।
यह कहाँ की न्यायसंगत व्यवस्था है कि राजनीतिक प्रभाव और पैरवी में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करनेवाले अधिवक्ता उसी कोर्ट में जज बन जाये और अपने द्वारा दाखिल मामलो में फैसला दे। अपने जूनियरों और साथियो के पक्ष में क्या फैसला पक्षपाती नहीं होगा?
इसी। घालमेल के कारण सुप्रीम कोर्ट के वकीलों ने इतनी ज्यादा अपनी फीस बढ़ा रखी है, की आम आदमी यहां पैर रखने की हिम्मत नहीं करता।
निचली अदालत में भी तमाम अच्छे अधिवक्ता हैं, पर वे इस तरह जज बनने की क्या सोच,उम्र बीत जाती है एक अदद वरिष्ठ अधिवक्ता तक नहीं बन सकते।
निचली अदालत में काम करने वाला लिपिक चाहे भले ही क्यों न लॉ की डिग्री रखता हो, कानून का अत्यधिक व्यवहारिक ज्ञान हो,अनुभव हो लेकिन एक सेकंड क्लास मजिस्ट्रेट नहीं बन सकता।  न ऐसा कोई डिपार्टमेंटल सिस्टम है। क्या इसमे कोई बदलाव नहीं आनी चाहिए?
बात निकली है तो दूर तलक जानी चाहिए।
इसे इतना फारवर्ड करो कि सरकार की कान तक आवाज जाए।
यह सिस्टम अब बदलनी ही चाहिए।