Sunday 24 December 2017

जाति नहीं वर्ण व्यवस्था में यकीन रखिये।

हमारी आर्य ऋषि परम्परा जाति पाती में विश्वास नहीं करती वरन वर्ण व्यवस्था में विश्वास करती है, जहां जन्म के अनुसार नहीं बल्कि कर्म के अनुसार व्यक्ति का वर्ण निर्धारित होता है। यानि  ब्राह्मण का कर्म कर रहे व्यक्ति का पुत्र यदि सेवा कार्य कर रहा है तो वह शुद्र होता है तथा इसी प्रकार एक शुद्र का कर्म कर रहे व्यक्ति का पुत्र पुत्री क्षत्रिय, वैश्य , ब्राह्मण हो सकता है। गौरतलब है कि कोई भी वर्ण ऊँचा नीचा नहीं है।
यह व्यवस्था पूर्व वैदिक काल से प्रारंभ होकर उत्तरवैदिक काल में दृढ़ होती गयी और जिस वर्ण का कर्म करने वाले व्यक्ति के घर पुत्र पुत्री का जन्म होने लगा, संतान अपने माता पिता का वर्ण धारण करने लगा, जो धीरे धीरे जाति में बदल गयी।
यह व्यवस्था 7वीं सदी तक आते आते और भी निश्चित होती गयी। अब तक राजतन्त्र प्रशासन की व्यवस्था बन चुकी थी।प्रशासन में सहयोग  हेतु लिखने पढ़ने वाले व्यक्तियों की आवश्यकता महसूस की जाने लगी थी। अतःइन चारों वर्णो में जो भी व्यक्ति लिखने पढ़ने का कार्य करने लगे, उसे एक नई जाति लेखक कहा जाने लगा। जो बाद में भगवान चित्रगुप्त के संतान माने जाने लगे। चित्रगुप्त की काया से उतपन्न माने जाने के कारण लेखको को कायस्थ भी कहा जाने लगा।
समाज में ऊंच नीच का जहर घोलती जाति व्यवस्था हिन्दू समाज का अब तक अहित ही करती आई है। ब्राह्मण वर्ण को श्रेष्ठ और क्रमशः शुद्र वर्ण को निकृष्ठ घोषित करना समाज के प्रभुत्वसंपन्न लोगों की चाल और शोषण का हथियार था, जिसने शुद्रो को हिन्दू धर्म त्याग कर बौद्ध , मुस्लिम या ईसाई धर्म अपना कर समानता पाने की मृग मरीचिका दिखाती आयी है। अनेको लोग आज भी इस जाति व्यवस्था में शोषित हैं।
अगर हम वर्ण व्यवस्था में पुनः विश्वास रख सके, जैसा की स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने आर्य समाज की स्थापना कर हमें पुनः वेदों की ओर लौटने का संदेश दिया, तो हिन्दू समाज पुनः एकजुट हो सकता है। इसलिए हमे हिन्दू समाज के प्रत्येक व्यक्ति से विना उसके जाति पूछे मन, वचन और कर्म से समान व्यवहार  करने  और सम्भव मदद को तैयार रहने की जरूरत है। मैंने अपने जीवन व्यवहार में यही तरीका अपनाया है।
एक निवेदन और, यदि हमें वर्ण व्यवस्था में वास्तव में यकीन है तो हम सभी लिखने पढ़ने वाले यानि कलम को अपनी जीविका के रूप में अपनाने वाले लोगों के इष्ट देव भगवान चित्रगुप्त हुए। अतः आग्रह होगा की आने वाले चित्रगुप्त पूजन के दिन हम भगवान चित्रगुप्त की पूजा करे।यह जाति व्यवस्था को नकार कर वर्ण व्यवस्था को अपनाने में भी सहायक होगा।
धन्यवाद।
कमल किशोर प्रसाद,chatra, झारखण्ड
tikhimirchiofadvocatekamal.blogspot.com

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