Sunday 24 December 2017

अपने धर्म संस्कृति का अभिमान कीजिये।

राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त के शब्दों में-
जो भरा नहीं है भावो से, बहती जिसमे रसधार नहीं।
हृदय नहीं वह  पत्थर है, जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं।।
         ऐसे लोगों के बारे में क्या कहा जाय, जिन्हें अपनी नीज धर्म,जाति, देश, संस्कृति पर अभिमान नहीं, और अपने कर्म,विचार से अपने ही धर्म,संस्कृति,सभ्यता और राष्ट्र का जड़ खोद रहे।
जाति कथा बखान करना न मेरा उद्देश्य है, न ही इस ग्रुप का। मेरा उद्देश्य है अपने धर्म, संस्कृति के बारे में लोगों को बताना।
विरोध का भी एक तरीका होता है।
कुछ कायर,हीन् भावना से ग्रसित लोग इसी मंच से हिन्दू धर्म के बारे में अपने दिमाग की गन्दगी निकालते है, तब तो इस महाशय ने कुछ भी नहीं कहा।
मैं बता दूँ की मैं बंशज हूँ पृथ्वीराज,राणाप्रताप, वीर शिवाजी और सावरकर का और शिष्य पूज्य महामना मालवीय का।मैं पहले हिंदुस्तानी और हिन्दू हूँ, फिर कुछ और। हमे गर्व है विश्व के सर्वश्रेष्ठ धर्म संस्कति के वाहक होने का।
मै हिन्दू के रूप में किसी विधर्मी से बैर भाव नहीं रखता, बल्कि हर विधर्मी राष्ट्रप्रेमी उसी रूप में प्रिय है जैसे मुझे एक एक हिन्दू प्रिय है।
अपनी धर्म संस्कृति और राष्ट्र के लिए सिर्फ एक जन्म नहीं, बल्कि हर जन्म की आहुति स्वीकार है।

जय हिंद,जय भारत,जय हिन्दू धर्म संस्कृति।

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