Tuesday 19 December 2017

नौकरी और जीवन का कशमकश।


ये नौकरी भी क्या चीज़ है यारो......
जिनके लिए नौकरी करता हूँ,
 वे घर पर इंतेजार कर रहे।
जिनकी परवरिश के लिए न समय से लंच  ,
न समय से घर लौटता।
जिनकी फ़िक्र में अपनी जवानी खो रहा, बुढ़ापा बीमारी की ओर बढ़ रहा,
वे न आज मेरी खैरियत लेते हैं,
न कल को पूछेंगे।
जो पूछेंगे, उनकी ही फ़िक्र नहीं कर   रहा।
बच्चो की शिकायतें,
पत्नी का इंतज़ार
और  माता पिता की आस,
न पूरी आज तक किया, न कर पा रहा।
बस इंतज़ार..इंतज़ार और इंतज़ार।
एक सुकून भरी जिंदगी की आस में
 आज सब कुछ पाया ,
बस सुकून ही नहीं।
कमल किशोर प्रसाद
चतरा, झारखण्ड।
tikhimirchiofadvocatekamal.blogspot.com

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